मय कहंवा ल लानव हो आरुग फुलवा ( mai kahan la lanav aarup fulwa cg Panthi geet in hindi lyric )
पंथी गीत | मय कहंवा ल लानव हो आरुग फुलवा ( mai kahan la lanav aarup fulwa cg Panthi geet in hindi lyric ) :
साखी- घासीदास घनघोर गुरु पग बंदव कर जोर
भूले सुध सुरता दिहव, गुरु मोर सबद कहंव तोर
मय कहंवा ल लानव हो आरुग फुलवा
क इसे मंय चढावंव साहेब आरुग फुलवा
1. बगिया के फूल ल सबो भौंरा जुठारे हे साहेब
कहां ले आरुग फूल लान के चढावंव साहेब
2. गाय के गोरस ल बछरू जुठारे हे
कहां के आरूग गोरस लानव साहेब
3. कोठी के अन्न ल सुरही जुठारे हे
कहां के आरुग चाउर के तस्म ई बनानंव साहेब
4. नदिया के पानी ल मछरी जुठारे हे
कहा के आरुग जल मय लानव साहेब
5. आरूग हवे हमर हिरदय के भाव साहेब
ओही ल सरधा से तोर चरन म चढावंव साहेब
पंथी गीत | मय कहंवा ल लानव हो आरुग फुलवा ( mai kahan la lanav aarup fulwa cg Panthi geet in hindi lyric )
पंथी गीत का भावार्थ | Meanings of This Panthi Song :
हे सदगुरु, आप हमारे श्रेष्ठ गुरु हैं। इसलिए हाथ जोड़कर आपकी चरण वंदना कर रहा हूं। साथ ही यह विनती है कि मुझे पूर्ण स्मृति करावें, ताकि आपके शब्द को यथावत ज्यों की त्यों अभिव्यक्त कर सकूं।
मैं आपकी पूजा अर्चना कैसे करूं, कौन से और कैसे फूल आपके चरणों में समर्पित करूं, क्योंकि समस्त वनों, उद्यानों में खिलने वाले फूल अपवित्र हैं। उन्हें भंवरे ने जूठे कर दिए है। अतः वे जूठे व अपवित्र फूल आपके योग्य नहीं हैं। इसी तरह, गाय के दूध को बछड़े ने जूठा कर दिया है। अन्नागार में रखे अन्न सुरही नामक कीट-पंतगे द्वारा जूठे कर दिए गए। आपके भोग हेतु तस्मै, चीला, रोठ आदि नहीं बनाए जा सकते, क्योंकि ये जूठे और अपवित्र वस्तु आपके योग्य नहीं। आगे गुरु बाबा कहते हैं कि सागर, नदी-नाले, कुएं, तालाब के जल को मगरमच्छ और मछलियों ने जूठे कर दिए हैं। अर्थात जल भी अपवित्र हो गए, जो आपके योग्य नहीं हैं।
अतएव, इस दुनिया में ऐसी वस्तु या द्रव्य नहीं है, जो पवित्र हो और जिसे मैं आपको समर्पित कर सकूं। थोड़ी असमंजस के बाद गहराई से विचारकर कहते हैं कि इस हृदय और मन में उत्पन्न विचार या भाव ही पवित्र है, जो अभी व्यक्त नहीं हुआ है। ऐसे पवित्र भाव को मैं आपके चरणों पर समर्पित करता हूं।
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