पंथी गीत | जगमग जोत जलय हो सतनाम के मंदिर म ( Jagmag Jyoti Jale Satname Ke Mandir me | cg Panthi geet in hindi lyric ) :
पंथी गीत | जगमग जोत जलय हो सतनाम के मंदिर म ( Jagmag Jyoti Jale Satname Ke Mandir me | cg Panthi geet in hindi lyric ) :
सत से धरती टिके है, सत से खड़े अगास।सत से सृष्टि सिरजे, कह गये घासीदास।
1. जगमग जोत जलय हो सतनाम के मंदिर म...
नाम के मंदिर म सतनाम के मंदिर म... जगमग जोत जलय हो...
काकर घर परे निस अंधयरियां काकर अंगना दियना बरय हो...
मुरख अंगना निस अंधयरियां
ज्ञानी के अंगना दियना बरय हो...
2. काकर घर म बिस के लहरा
काकर घर म अमरित चुहय हो...
पंथी गीत "जगमग जोत जलय हो सतनाम के मंदिर" का भावार्थ | Meanings of This Panthi Song :
सत्य से धरती स्थिर है और सत्य से सूरज प्रतिदिन अपने कर्म पर रत है। इसी तरह पूरी सृष्टि या ब्रह्मांड सत्य से सृजित है। सत्य या सकरात्मक तत्व न हो, तो किसी चीज का सृजन संभव नहीं है। न ही सदा के लिए उनका स्थिर रहना संभव है। सत्य सार तत्व है। अतः सतनाम ही सार है। गुरु घासीदास कहते है कि सतपुरुष पिता के द्वारा सृजित घट-रूपी मंदिर में सतनाम-रूपी दीप निरंतर जगमग करते जल रहे हैं। हालांकि, अज्ञानता और मूर्खता के कारण वहां अंधेरा व्याप्त है। वहां न तो कुछ दिख रहा है और न ही सद्विचार सूझ रहे हैं, जबकि ज्ञानी लोगों के घर सदैव प्रकाशवान होते हैं। आगे की पंक्ति में वह कहते हैं कि जो अधर्मी या पापी हैं, उनके घर में वासना-रूपी विष का लहरा है। इस वजह से ऐसे घर-परिवार, समुदाय मृतप्राय हैं, जबकि धर्मी और पुण्यात्मा लोगों के घर में सदैव अमृत वर्षा होती है। अर्थात् वे सजीव व जागृत रहते हैं। इसके फलस्वरूप सफलता उनके कदम चूमती है। इसलिए हे संत जन, सदैव, ज्ञान, पुण्य और धर्म को आत्मसात करो। इससे सदैव उन्नति करते सुख को प्राप्त करोगे।
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