गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)

गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)

गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing) :

हैलो दोस्तो। नमस्कार । आप सभी का इस पोस्ट में स्वागत हैं जिसका टाॅपिक है... ‘‘गोदना क्या है। गोदना कैसे गोदते है। गोदना का एतिहासिक महत्व क्या है। ’’


गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)
गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)

गोदना एक प्राचीन कला है। विश्व भर में इसे आदिवासी संस्कृति का अंग माना जाता है। आधुनिक समय में इसका जो रूप और सन्दर्भ बन गया है वह एक अलग कहानी है, परन्तु हम यहां इसके पारम्परिक चरित्र की ही चर्चा कर रहे हैं। 

आइये दोस्तो। गोदना के बारे में अब विस्तार से जानते हैं .... 

1. गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है (What is tattooing or what is traditional tattooing ) ? .... 

गोदना को अंग्रेजी में ;ज्ंजववद्ध भी कहा जाता है। गोदना एक प्रकार का शारीरिक कला है। जिसमे मानव शरिर को सर्जिकल सूईयो के द्वारा सतही क्षेद करके उन छेदो में रंगने वाले रंग या मसाले (स्याही) भर दिए जातें है।

ये रंग या मसाले विभिन्न प्रकार से तैयार किया जाता है। पुराने जमाने में गोदने के लिए मसाले या स्याही के रूप में काले तिल के काजल का उपयोग किया जाता था। जिनको विभिन्न प्रकार से अच्छी तरह से अग्नि में कडाही में रखकर भूंजा जाता था । भूजने के बाद उनकां लौदा बनाकर जालाया जाता था । उसको जला कर काजल का निर्माण किया जाता था । इन्ही काजल को मसाला के रूप में प्रयोग किया जाता है। गोदने के लिए। 

गोदने के रंग के लिए रामतिल या किसी भी तेल के काजल को तेल या पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। काले तिल से जो काजल बनाए जाते है उन्हे ही तेल या पानी के साथ मिलाकर मानव शरिर में विभिन्न आकृतियाॅ बनाई जाती है। इन्ही आकृतियो पर फिर लगातार सूईयाॅ चलाकर सतही छेद कर दिए जाते है। इन्ही सतही क्षेदो में जो काले काजल का स्याही रहता है वह शरिर के अंदर घुस जाता है । इसी प्रकार से गोदने कि प्रक्रिया गोदहारिन या गोदने वाला करता है। इसी प्रकार गोदने की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। 

गोदने का प्रक्रिया समप्न्न होने पर गोदहारिन या गोदना गोदने वाला गोबर पानी से गोदना को अच्छी तरह धो देते है। और उनमे हल्दी का लेप लगा देते है। इस प्रकार गोदना को सुरक्षा प्रदान किया जाता है। इस प्रकार गोदने को सुखने तक विषेष रूप से देखभाल का जरूरत होता है। । रेडी का तेल और हल्दी के लेप से सुजन नहीं होता है और गोदना जल्दी सुखता है। बताया जाता है कि पहले बबूल के कांटे को बलोर के रस में डूबोकर शरीर में चुभाकर गोदना गोदा जाता था।

गोदना सुखने के पष्चात यह गोदना सालों साल उस व्यक्ति से शरिर में बना रहता है। इस प्रकार गोदना व्यक्ति के साथ पुरी उम्र साथ रहता है। 

2. गोदना का अर्थ (meaning of tattoo) :

गोदना शब्द का अर्थ है किसी सतह को बार बार छेदना, अर्थात अनेक बार छिद्रित करना। इस प्रकार यह शब्द उस क्रिया का प्रतिनिधित्व करता है जिसकी पुनरावृति से इसे सम्पादित किया जाता है। 

3. लोग गोदना क्यो गोदवाते है (Why do people get tattooed ) : 

गोदना के लाभ होेने के साथ साथ गोदने के कई प्रकार के हानी भी होते है। गोदने कि चाह हर किसी को होती है। लोग गोदना विभिन्न कारणों से गुदवाते है .... 

 कोई गोदने के लाभ को देखकर गोदना गोदवा/गुदवा लेता हैं तो कोई गोदना के हानी को देखकर गोदना नही गुदवाता है।  तो वही कुछ लोग गोदना को शौक के लिए शौक से गुदवाते है। 

गोदना से होने वाले लाभो में शारिरिक सौन्दर्य प्रमुख है। गोदना गुदाने वाले व्यक्ति विषेष के सौन्दर्य में चार चाॅद लग जाता है। लोगों मे वह आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। भरी भीड़ में हर किसी की नजर उस गोदने वाले व्यक्ति की ओर ही टिकी हूई होती है। इस प्रकार से गोदने से व्यक्ति विषेष के शरिरिक सौन्दर्य की वृद्धि होती है। 

कुछ जनजातियों की मान्यता है कि शरीर में गोदना रहने से नजर नहीं लगती है। एक मान्यता है की गोदना गुदवाने से शरीर बीमारियों से बच जाता है। शरीर में धारण किये सभी गहने मरने के बाद उतार लिये जाते हैं। गोदना रुपी गहना शरीर में हमेशा साथ रहता है। इसलिए इसे अमर श्रंगारिक गहना या स्वर्गिक अलंकरण भी कहते हैं। 

एक मान्यता है कि गोदना गुदवाने से स्वर्ग में स्थान मिलता है। इसलिए इसे स्वर्ग जाने का पासपोर्ट भी कहा जाता है। एक मान्यता प्रचलित है की हथेली के पीछे में गोदना नहीं रहने से मरने के बाद स्वर्ग में अंजलि से पानी गिर जाता और व्यक्ति प्यासा रह जाता है। 

जनजातीय मान्यता अनुसार बिना गोंदना गुदवाए नारी को मरने के बाद भगवान के सामने सब्बल से गुदवाना पड़ता है। कहा जाता है की गोदना रुपी गहना को न चोर चुरा सकता है और न ही इसे कोई बटवारा कर सकता है। 

हिन्दू धर्म में किंवदन्तियां प्रचलित हैं कि पहले बुजुर्ग लोग बिना गोदना गुदवाए नारी के हाथ का पानी तक नहीं पीते थे। गोदना मायके और ससुराल की पहचान के लिए अलग-अलग गुदवाने का रिवाज है। उरांव जनजाति में एक मान्यता प्रचलित है की गोदना पैसे के रुप में गुदवाए जाते हैं। मरने के बाद गोदना ही पैसा के रुप में साथ जाता है। रमरमिहा जाती में मान्यता प्रचलित है की भगवान गोदना से ही सच्चे भक्त की पहचान करते हैं। 

इन्हीं सभी मान्यताओं के कारण कुंवारी बालिकायें भी उत्सुकता पूर्वक गोदना गुदवाती थीं। सबसे अधिक गोदना प्रिय जनजाति बैगा है। बैगा जाति में आठ साल की लडकियों को गोदना गोदने की प्रथा प्रचलित थी। गोदना के संबंध में ग्रामीण बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं कि समाज में प्रचलित मान्यताओं और प्रथाओं से ही हमें गोदने की सूइओं के दर्द को सहने की शक्ति मिलती थी। और हम बचपन में ही खुशी खुशी शरीर के सभी अंगों मे गोदना गुदवा लेते थे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गोदना को एक्यूपंचर का रुप मान सकते हैं। चीन में शरीर में सुई चुभाकर अनेक बीमारियों को ठीक किया जाता है। भारत में एक्यूपंचर पद्वति 1959 में आई इस पद्वति से शरीर के अपने न्यूरो हार्मोनल सिस्टम को क्रियाशील कर देते है। सुई से अगर अच्छी तरह त्वचा को छुआ जाए तो शरीर का स्वस्थ होना संभव है। चाहे वह सुई गोदना की ही क्यों न हो। सरगुजा अंचल के लोग इस तथ्य को मानते हुए स्वीकार करते हैं कि गोदना से सुंदरता के साथ-साथ वात रोग, चोट का दर्द या फिर अन्य किसी प्रकार के दर्द से राहत मिलती है।

4. गोदना कौन गोदते है ?  (Who does tattooing?) : 

गोदना गोदने वाली जातियों में अधिकतर महिलायें होती हैं, जो इस कला में निपुण होती हैं। 

समूचे भारत की भांति छत्तीसगढ़ में भी गोदना, यहाँ की आदिवासी एवं ग्रामीण संस्कृति का अभिन्न अंग है। परिस्थितिवश गोदना को आदिवासी और दलितों के साथ जोड़कर देखा जाता है। इन्हे बनाने वाले और इन्हे बनवाने वाले इन्हीं पृष्ठभूमियों से आते हैं। गोदना करने के लिए मानव त्वचा को छेदना और उससे निकले रक्त को पोंछना होता है। यह कार्य उच्च समझी जाने वाली जातियों में अपवित्र और हेय माना जाता है, जिसे चाण्डालों का कार्य समझा जाता है। इस कारण गोदना अथवा गुदना करने वाली जातियां भी समाज में निम्न स्थान रखती हैं। सामान्यतः गोदना करने का कार्य बादी जाति के लोग करते हैं। कहीं कहीं ओझा और जोगी जाति के लोग भी करते हैं।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्र में गोदना बनाने का कार्य बादी समुदाय के लोग करते हैं। अंबिकापुर से रामानुजगंज जाने वाले मुख्य सड़क मार्ग पर सूरजपुर के पास बोबगा गांव में अनेक बादी रहते हैं। कुसमी क्षेत्र के डीपाडीह के पास एक छोटे पहाड़ी टीले पर स्थित बादा गाँव में तो समूची आबादी बादी जाति के लोगों की है। यहाँ लगभग बीस-पच्चीस बादी परिवार रहते हैं। इनकी स्त्रियां गांव-गांव घूम कर गोदना करती हैं। इस क्षेत्र में जमड़ी और मानपुर गांवों में भी बादी रहते हैं। लोकस पुर और बगाड़ी गांव में भी बादी रहते हैं।    


बादी अपने आप को मूलतः गोंड मानते हैं। गोदना काम करने के कारण गोंड भी इन्हें निम्न मानाने लगे हैं। वे इनका बनाया  खाना नहीं खाते, इनका छुआ पानी भी नहीं पीते। सामान्य धारणा यह है कि आदिवासी समाज में ऊंच-नीच की भावना नहीं होती। परन्तु उनमें भी यह भावना काफी हद तक कार्य करती है। गोंड आदिवासियों में यह भावना अन्य आदिवासियों की अपेक्षा अधिक है।

बस्तर में गोदना का काम ओझा जाति के लोग करते हैं इन्हें नाग भी कहा जाता है। कोंडागांव क्षेत्र के सोनबाल के पास स्थित कनैरा गांव में कुछ ओझा परिवार रहते हैं। यहाँ रहने वाले नाग  गोदना करने के लिए दूर दूर तक प्रसिद्द है। 

5. गोदना से सम्बंधित मान्यताएं और उनका महत्व  (Beliefs related to tattooing and their importance )?  

आमतौर पर युवतियों द्वारा गोदना गुदवाने का काम किशोरावस्था में विवाह से पहले कराया जाता है। 

महाभारत काल में श्रीकृष्ण गोदनहारिन का रुप धारण कर राधा को गोदना गोदने गये थे। 

कुछ समुदायों में विवाह के उपरांत भी गोदना करना आवश्यक माना जाता है। छत्तीसगढ़ में सर्वमान्य मान्यता यह है कि गोदना स्त्रियों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आभूषण हैं। मृत्यु के बाद सारे आभूषण इसी संसार में रह जाते हैं, केवल गोदना ही देह के साथ परलोक तक साथ जायेगा। इस विश्वास के चलते गोदना को स्थानापन्न गहनों की भांति शरीर के उन अंगों पर बनवाया जाता है जहाँ अन्य आभूषण पहने जाते हैं। 

कालांतर में स्थानीय परिस्थितियों एवं जातिगत विश्वासों के चलते गोदना के साथ अनेक मान्यताएं जुड़ गई। अपनी जातिगत पहचान दर्शाने के लिए भी कुछ जातियों में अंग विशेष पर एक विशिष्ट गोदना पैटर्न गुदवाया जाने लगा।

 भिन्न भिन्न समुदायों ने भिन्न भिन्न प्रकार से शरीर पर गोदना करवाकर उसे अपनी जातीय अस्मिता से जोड़ दिया, जैसे बैगा आदिवासी स्त्रियां अपने समूचे शरीर पर चौड़ी-चौड़ी समांनांतर रेखाओं की पुनरावृति से गोदना संयोजित कराती हैं। 

ओडिशा की कुट्टीआ कोंध आदिवासी स्त्रियां चेहरे पर मोटी-मोटी रेखाएं गुदवाती हैं ताकि उनके चेहरे का सौंदर्य विद्रूप हो जाए। कहा जाता है, कोंध स्त्रियों की सुंदरता के कारण आक्रमणकारी सेनाओं के सैनिक उन्हें उठा ले जाते थे। इससे बचने के लिए कोंध युवतियों के चेहरे पर गोदना करवाकर उन्हें आकर्षण विहीन बनाने का प्रयास किया जाता था।   

गोदने का चिकित्सकीय उपयोग भी किया जाता है, बच्चों के अपंग होने पर उनके हाथ-पैर पर किसी विशेष स्थान पर गोदना कराया जाता है जिससे वह अंग क्रियाशील हो सके।

स्त्रयों के बच्चे न होने पर नाभि के नीचे गोदना करवाकर उनकी कोख खुलवाई जाती है। इस प्रकार की अनेक मान्यताएं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलन में हैं। इस सब के अतिरिक्त कई लोग अपना स्वयं का, अपने प्रिय का, अपने मित्र का, अपने इष्ट देवी देवता का नाम अथवा चित्र गुदवाते हैं। 

छत्तीसगढ़ के रामनामी समुदाय ने गोदना का प्रयोग एक सामाजिक प्रतिकार के रूप में आरम्भ किया। दलित होने के कारण उन्हें मंदिर प्रवेश एवं शास्त्र पाठन की वर्जना थी अतः उन्होंने इस वर्जना के विरोध स्वरुप अपने सामूचे शरीर पर राम-राम शब्द का गोदना करना आरम्भ कर दिया। यह समुदाय आज भी अल्पमात्रा में ही सही पर इस परिपाटी का पालन कर रहा है। 

6. छत्तीसगढ़ के स्त्रियों मे प्रसिद्द गोदना कौन कौन से है (Which is the famous song among the ministers of Chhattisgarh) ?

भिन्न-भिन्न आदिवासी समुदायों की पसंद भी अलग-अलग होती है। कंवर आदिवासी हाथी का मोटिफ अधिक बनवाते हैं। बड़ीला कंवर बुंदकिया गोदना और पोथी मोटिफ बनवते हैं।

 रजवार जाति की महिलाएं जट मोटिफ बनवाना पसंद करतीं हैं।

 इस क्षेत्र में सींकरी, डोरा, लवंगफूल, करेला चानी, हाथी, पोथी, चक्कर, जट, चाउर, फुलवारी, चिरई गोड़, चंदरमा, कोंहड़ा फूल, अरंडी डार,  मछरी, भैसा सींघ, करंजुआ पक्षी, कडाकुल सेर, सैंधरा और मछरी कांटा जैसे मोटिफ लोकप्रिय हैं।

गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)
गोदना क्या है या पारंपरिक गोदना क्या है। गोदने की पूरी जानकारी (What is tattooing or what is traditional tattooing. Full details of tattooing)

मारे बस्तर मैं मरार, गौक, मुरिया, गांडा, कलार, लोहार, तेली और हल्बा लोग गोदना करते हैं। स्त्रियां अधिक और पुरुष थोड़ी मात्रा में। यहाँ छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाके से अलग बुंदकिया गोदना अधिक लोकप्रिय है। अर्थात बिंदुओं के समूह से बने पैटर्न। यहाँ पहुंची, बिच्छू, पुतरा, तिकोनिआ, हथौड़ी एवं चूढ़ा जैसे पैटर्न अधिक प्रचलन में हैं।   


7. गोदना कैसे गोदते है ? गोदना गोदने पारंपरिक विधि क्या है ? जानिए (How to tattoo? Tattooing What is the traditional method of tattooing? Learn) - 

गोदना करने के लिए दो, तीन या चार माध्यम मोटाई की सुइयों को आपस में बाँध लिया जाता है। 
अब चिमनी जलाकर उसका धुंआ इकठ्ठा कर लिया जाता है।

 इकठ्ठा किये गए काजल के पावडर को पानी अथवा मिटटी के तेल में घोलकर गाड़ा घोल बना लिया जाता है।

बंधी हुई सुइयों को इस घोल में डुबाकर शरीर के उस अंग की त्वचा पर बार-बार चुभाते हैं। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे की जाती है ताकि गोदना करवाने वाला कष्ट से बेहाल न हो जाए। गोदने का काम सामान्यतः सुबह ठंडे समय में किया जाता है।

 वांछित आकृति बन जाने पर उस पर स्याही का घोल लगाया जाता है ताकि काला रंग त्वचा में समां जाए। 

इसके बाद गोदना की गई जगह को पानी से धोकर वहाँ तेल और हल्दी का लेप पर देते हैं।

8. गोदना गोदने की आधुनिक विधि क्या है ? जानिए (What is the modern method of tattooing? Learn) : 

गोदना करने हेतु आंतरिक गांवों / शहरों में आज भी इसी पारम्परिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है परन्तु आजकल गोदना करने की छोटी / बड़ी  मशीन बाजार में आ गई है। 

छत्तीसगढ़ के ग्रामीण हाट बाजारों में मशीन से गोदने का काम बहुत लोकप्रिय हो गया है।  इस पद्यति से कम समय और कष्टरहित तरीके से गोदना हो जाता है। यहाँ गोदना करनेवाले भिन्न पैटर्न के प्रिंट साथ रखते हैं, जिन्हें देखकर ग्राहक आसानी से तय कर लेता है कि उसे कहाँ और कौनसा पैटर्न गुदवाना है।

8. छत्तीसगढ़ मे गोदना गोदाने की रिवाज  ? जानिए (The custom of tattooing in Chhattisgarh? Learn ) : 

 बस्तर अंचल की अबुझमाडियां दण्डामी माडियां, मुरिया, दोरला, परजा, घुरुवा जनजाति की महिलाओं में गोदना गुदवाने का रिवाज पारम्परिक है। बस्तर, कांकेर के जनजातियों में विवाह पूर्व लड़कियों में गोदना गुदवाने का रिवाज है। यहां की जनजातीय महिलायें कोहनी में मक्खी, अंगूठा के किनारे खिच्ची, पंजा में खडडू, बांह में बांहचिंघा और छाती में सुता गोदना गुदवाती हैं। 

सरगुजा अंचल में गोदना प्रथा का प्रचलन काफी प्राचीन है। यहां की सभी जनजातियों मे गोदना गुदवाने की प्रथा प्रचलित है। क्षेत्र और जाति के आधार पर भिन्न-भिन्न गोदना गुदवाये जाते हैं। यहां की जनजातियां सम्पूर्ण शरीर में गोदना गुदवाती हैं। सभी अंगों के गोदना का अलग-अलग नाम और उसका महत्व है। यहां की गोदना प्रिय जनजातियां गोड, कंवर, उरांव, कोडाकू, पण्डो, कोरवा हैं। स्त्रियां सुन्दरता के लिए माथे में बिन्दी आकृति गुदवाती हैं। इनकी मान्यता है कि इससे सुन्दरता के साथ-साथ बुद्वि का विकास होता है। दांतो की मजबूती के लिए ठोढी में गोदना गुदवाये जाते हैं। इसे मुट्की कहते हैं। नाक की गोदना को फूल्ली और कान की गोदना को झूमका कहते हैं। रवांध भुजा में चक्राधार फूल आकृति गुदवाने से सुन्दरता बढती है। गला में हंसुली गहना जैसी आकृति गुदवाने से सुन्दरता के साथ-साथ आवाज में मधुरता आती है। कलाई की गोदना को मोलहा कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसके गुदवाने से स्वर्ग में भाई-बहन का मिलाप होता है। हथेली के पीछे गोदना को ’’करेला चानी’’  और हथेली के पीछे की सम्पूर्ण गोदना को ’’हथौरी फोराय’’ कहते है। हाथ के अंगूठा में मुन्दी और पेंडरी में लवांग फूल गुदवाये जाते हैं। पैर में चूरा-पैरी और पंजा में अलानी गहना गुदवाये जाते हैं। पैर के अंगूठे की गोदना को अनवठ कहते हैं। इसी तरह शरीर के प्रत्येक अंगों में हाथी पांज ,जट, गोंदा फूल, सरसों फूल, कोंहड़ा फूल, षंखा चूड़ी, अंडरी दाद, हल्दी गांठ, माछी मूड़ी पोथी, कराकुल सेत, दखिनहा, धंधा, बिच्छवारी, पर्रा बिजना, हरिना गोदना अनेक अलग-अलग नामों से गोदना गुदवाये जाते हैं, जिसका अपना महत्व है। 
 
उरांव जनजाति में गोदना प्रथा एक ऐतिहासिक घटना से जुडी हुई है। उरांव बोली कुडूख में इसे बन्ना चखरना कहते हैं। इसका मतलब श्रंगार गोदना होता हैं। उरांव जनजाति की महिलायें अपने माथे पर तीन खडी लकीर अर्थात एक सौ ग्यारह (111) रोहतसगढ़ (पटना बिहार) लडाई की यादगार में गुदवाती हैं। उरांव जनजाति के लोग बताते हैं कि रोहतसगढ़ कीला में औरंगजेब के शासन काल के समय मुगल सेना की एक टुकडी तीन बार अक्रमण की। जिसमें महिलायें पुरुष वेष-भूषा में वीरता पूर्वक लडते हुए हरायीं थीं। लुंदरी ग्वालन ने मुगल सेना को बताया कि पुरुष भेष-भूषा में महिलायें ही लडाई करती हैं। इस बात की जानकारी मिलते ही मुगल सेना पुनः आक्रमण की और वे विजयी हुये। हारने के बाद उरांव लोग दास्ता स्वीकार नहीं किये और पलामू से राँची व सरगुजा में बस गये। यही कारण है कि 12 वर्ष में एक बार रोहतसगढ़ की याद में उरांव जनजाति के लोग जनीषिकार उत्सव मनाते हैं। जिसमें केवल महिलायें भाग लेती हैं। इस उत्सव के दौरान महिलायें पुरुष भेष-भूषा में शिकार करती हैं। और अपने माथे पर तीन खडी लकीर रोहतसगढ की याद में गुदवाती हैं

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