महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?

महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?

दोस्तों! नमस्कार आप सभी का मेरे ब्लॉग "ज्ञान का फूल" में हार्दिक स्वागत है | दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम जानेगे की "महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?"
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आइये दोस्तों अब मैं आपको इस पोस्ट में आपको इसके शिर्सक या विषय वस्तु की ओर लिए चलता हु और जनते है की -"महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?" इस प्रश्न का उत्तर | 

महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?

महाभारत के शांति पर्व में युद्ध के पश्चात् महामहिम भीष्म युधिष्ठिर को ढेर सारी नीतियुक्त बातें बताते हैं। इसमें युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह युधिष्ठिर से एक राजा के कर्तव्यों की व्याख्या बहुत विस्तार में करते हैं।

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महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह युधिष्ठिर को एक राजा के निम्नलिखित कर्तव्य बताते हैं -
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को "सत्यपरायण" होना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए "प्रारब्ध" का नहीं, अपितु अपने "पुरुषार्थ" का सहारा लेना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को आवश्यकतानुसार "कठोरता और कोमलता" दोनों का अवलम्बन करना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार यद्यपि धर्मशास्त्रों में "ब्राह्मणों" को दण्ड देने का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन यदि "ब्राह्मण" भी तीनों लोकों का विनाश करने के लिये उद्यत हो जायँ तो ऐसे लोगों को दण्डित करना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजाको "चारों वर्णों" में भेद नहीं करना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार एक राजा को "धैर्यवान" होना चाहिए और अपराधियों को दण्ड देने में संकोच नहीं करना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को "सेवकों" के साथ "हँसी-मजाक" नहीं करना चाहिये वरना वे उसे "गंभीरता" से नहीं लेते
  • भीष्म पितामह के अनुसार "मंत्रियों" के अलावा एक राजा को "गुप्तचर" भी रखने चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को सदा ही "उद्योगशील" होना चाहिये
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को जो "संधि" करने के योग्य हों, उनसे "संधि" करना चाहिए और जो विरोध के पात्र हों, उनका डटकर "विरोध" करना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार राजा को "जितेंद्रिय" होना चाहिए
  • भीष्म पितामह के अनुसार जिनके भरण-पोषणका प्रबन्ध न हो उनका "पोषण" राजा को स्वयं करना चाहिए और उसके द्वारा जिनका "भरण-पोषण" चल रहा हो, उन सबकी देखभाल करनी चाहिए
दोस्तों हमें उम्मीद है, कि आपको हमारी यह पोस्ट "महाभारत युद्ध उपरांत मृत्यु से पहले भीष्म पितामह का युधिष्ठिर को बताए गए नीतियुक्त बातें || महाभारत के शान्ति पर्व में 'राजधर्म' का क्या स्वरूप मिलता है?" जरुर पसंद आई होगी। 

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