एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?

एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?

दोस्तों! नमस्कार आप सभी का मेरे ब्लॉग ज्ञान का फूल में हार्दिक स्वागत है | दोस्तों आज के इस पोस्ट में हम जानेगे की "एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?". 

यदि आप इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए उत्सुक है की - "एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?" तो इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़िए जिससे आपको इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो सके | इस प्रश्न का उत्तर आपको जरुर मालूम होना चाहिए | 
आइये दोस्तों अब मैं आपको इस पोस्ट में आपको इसके शिर्सक या विषय वस्तु की ओर लिए चलता हु और जनते है की - "एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?".

एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?

एकलव्य की मृत्यु महाभारत का युद्ध होने से पहले ही श्री कृष्णा के हाथो हो चुका था | आप सभी जानते है की एकलव्य महाभारत कालीन योद्धाओं में से ही एक योद्धा थे लेकिन उनका महाभारत का युद्ध से पहले ही कृष्ण के हाथों मृत्यु को प्राप्त करना एकलव्य के कर्मों के कारन ही है कि उस जैसा योद्धा महाभारत तक जीवित ही नहीं बचा।

एकलव्य के सम्बन्ध में मूल महाभारत निम्न जानकारी मिलता है -

1. एकलव्य की शिक्षा : 

कहा जाता है की एकलव्य केवल गुरुद्रोण की मूर्ति का निर्माण करके स्वयं श्रम कर शिक्षा प्राप्त किया और धनुर्विद्या में निपुण हो गये। 

2. एकलव्य का गुरुदाक्षिना देना : 

एकलव्य जब पूरी तरह से अपनी धनुर्विद्या में निपुण हो गये तो अंत में द्रोणाचार्य के द्वारा उनसे गुरु दक्षिणा मांगा गया जिसमे उनके गुरु द्रोनाचार्या के द्वारा उनसे गुरु दक्षिणा के रूप में उनके दाएं हाथ का अंगूठा माँगा गया | एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में अपने दाएं हाथ के अंगूठे को काट कर अपने गुरु द्रोणाचार्य को दे दिया। 

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भागवतपुराण से एकलव्य के सम्बन्ध में निम्न जानकारी प्राप्त होता है -  

1. एकलव्य का राजा बनना :

एकलव्य के पिता हिरण्यधनु की मृत्यु के बाद एकलव्य श्रृंगवेरपुर का राजा बना। एकलव्य ने निषादों को संगठित किया और एक अति शक्तिशाली सेना बनाई।

2. एकलव्य की पत्नी  :

भगवत पूरान के अनुसार एकलव्य का विवाह सुनीता नामक लड़की के साथ हुआ था |

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3. आधुनिक धनुर्विद्या का जनक :

गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा एकलव्य का अंगूठा मांगे जाने के बाद एकलव्य अंगूठा कट जाने के बाद भी अपनी धनुर्विद्या को और भी अधिक अद्भुत बनाने का प्रयास कीया जिसमे में कामयाब भी हो गये। उन्होंने अपने धनुष विद्या को आगे केवल तर्जनी और मध्यमा अंगुली से ही धनुष चलाने में निपुणता प्राप्त कर लिया। 

आज के आधुनिक युग में सभी तीरंदाज धनुष चलाने उन्ही दो अँगुलियों 
केवल तर्जनी और मध्यमा अंगुली का उपयोग करते हैं। इस प्रकार एकलव्य आज के आधुनिक धनुर्विद्या का जनक भी माना जा सकता है | 

4. एकलव्य, जरासंघ और श्री कृष्ण :

एकलव्य के पिताजी जरासंध के ध्वज के नीचे शासन व्यवस्था का सञ्चालन करते थे | जब एकलव्य के पिता की मृत्यु हो जाती है तो मृत्युपरांत एकलव्य राज व्यवस्था का सञ्चालन जरासंघ के धवज के निचे ही राजा के रूप में करता है | इस प्रकार एकलव्य अपने पिता का ही अनुसरण किया | इस प्रकार एकलव्य जरासंध का सहयोगी हो गया जबकि वे जानते थे की जरासंघ पापी है। 

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5. एकलव्य का जरासंघ के साथ मथुरा पर आक्रमण :

चूँकि एकलव्य जरासंघ का सहयोगी बन चूका था जिस कारन से उन्हें जरासंघ का प्रत्येक युध्द में उनको साथ देना पड़ा था | जब जरासंघ श्रीकृष्ण नगरी मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया था तब उस दौरान भी एकलव्य जरासंघ का सहयोग दिया था। एकलव्अय का धनुर्विद्या अद्भुत था | इसी अद्भुत दनुर्विद्या से उन्होंने मथुरा की सेना का बहुत अहित किया था। इन युद्धों के दौरान श्री कृष्ण अपनी नगरी मधुरा में नही थे | 

6. एकलव्य का कृष्ण के हाथो मृत्यु :

एकलव्य जरासंघ के सहयोगी होने के कारन से जरासंघ के साथ कृष्णा नगरी मथुरा पर 18 वा बार आक्रमण करने उपस्थित थे | इस युध्द के दौरान ही श्रीकृष्ण ने उसे केवल दो अँगुलियों तर्जनी और मध्यमा के जरिये अद्भुत निपुणता से तीरंदाजी करते देखा जिसे देखकर श्री कृष्ण हैरान रह गए। 

एकलव्य को इस प्रकार से तीरंदाजी करते देख श्री कृष्ण यह जान चुके थे की एकलव्य धर्म स्थापना के रस्ते में अवरोध बन सकता है, जिसके कारण से श्री कृष्णा ने एकलव्य का वध करने का निश्चय किया | जिसके बाद एकलव्य को कृष्ण ने युद्ध के लिए ललकारा जिसके बाद एक भारी शिला एकलव्य के ऊपर कृष्ण ने प्रहार किया। इस प्रकार से एकलव्य श्री कृष्ण के हाथो जरासंघ का साथ देने के कारण वीरगति को प्राप्त हो जाता है।

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7. एकलव्य के मृत्यु के बाद उनके पुत्र केतुमान  :

जब जरासंघ के साथ एकलव्य मथुरा पर आक्रमण करते है तब श्री कृष्ण के हाथों एकलब्य मारे जाते है | एकलव्य के मृत्युप्रान्त एकलव्य के पुत्र केतुमान निषादों का राजा बनता है | एकलव्य के पुत्र केतुमान निषादों का राजा बनने के बाद महाभारत के युद्ध में पांडवों के बजाय दुर्योधन को सहायता किया |  महाभारत के युद्ध के दौरान एकलव्य के पुत्र केतुमान कौरवों के साथ होकर पांडवों से युध्द किये जिसमे वे भीम के हाथों मारे गये।  
 
इस प्रकार श्री कृष्ण के हाथों पाप और अधर्म का साथ देने के कारन एकलव्य को मरना पड़ा | एकलव्य एक महान योद्धा तो बना लेकिन धर्म का साथ नही निभाया | अधर्म और पाप का साथ दिया | एकलव्य के मृत्यु के उपरांत उनके पुत्रों ने भी कौरवों का साथ दिया |

इस प्रकार से धर्म के स्थापना के रास्ते में एकलव्य और उनके पुत्र अवरोध उत्पन्न करते है जिसके कारण वे मृत्यु को प्राप्त हो जाते है | इस पारकर एकलव्य और उनके पुत्रों का अंत हो जाता है |

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अंत में पोस्ट "एक्लव्य का महाभारत में आगे क्या हुआ? What happened next to Eklavya in the Mahabharata?" को पढने के लिए आपका सादर धन्यवाद |
जय श्री राम | 
जय हिंद ||
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